Chairman Message
MR. BABU LAL JUENJA
CHAIRMAN
(GURU GOBIND SINGH CHARITABLE TRUST)
“श्रियः प्रदुग्धे विपदो रुणद्धि यशांसि सूते मलिनं प्रमार्ष्टि।
सम्स्कारशौचेन परम् पुनीते शुद्धा हि बुद्धिः किल कामधेनुः॥“
सम्स्कारशौचेन परम् पुनीते शुद्धा हि बुद्धिः किल कामधेनुः॥“
अर्थात
“विद्या सचमुच कामधेनु है, क्योंकि वह संपत्ति को दोहती है, विपत्ति को रोकती है, यश दिलाती है, मलीनता धो देती है, संस्काररूप पावित्रय द्वारा अन्य को पावन करती है।“
आदरणीय अभिभावकों व प्रिय विद्यार्थियों,
सादर वंदे!
वर्तमान शिक्षा का स्वरूप कैसा हो, इस पर समय-समय पर प्रबुद्ध शिक्षाविदों द्वारा अनवरत समीक्षाएं होती रही है। मेरा यह स्पष्ट रूप से व्यक्तिगत मत है कि हमारी प्राचीन शिक्षा पद्धति सर्वोत्तम थी, क्योंकि वह ऋषि-मुनियों द्वारा संचालित गुरुकुल शिक्षा प्रणाली थी। आज से 5000 वर्ष पूर्व विश्व के ज्यादातर सभ्यताएं खानाबदोश जीवन यापन करती थी, तब भारत में सिंधु घाटी सभ्यता उन्नति के शिखर पर थी। जब अन्य सभ्यताओं को लिखना भी नहीं आता था, तब हमारे ऋषि-मुनियों ने विश्व को ऋगवेद ग्रंथ दे दिया था। भारतीय सभ्यता और वेदों ने समूचे विश्व को दशमलव, शून्य, दिशा सूचक और पंचांग (कलेंडर) से लेकर नृत्य, गायन, वादन जैसे लोक कलाओं के साथ ज्योतिष, साहित्य सृजन, विज्ञान, तकनीकी, निर्माण, गणनांक, कृषि, चिकित्सा विज्ञान, खगोलीय गणना के अलावा अंतरिक्ष विज्ञान का प्रमाणित ज्ञान दिया है।
मौजूदा शिक्षा पद्धति विद्यार्थियों को संपूर्णता की ओर नहीं ले जा रही। अंकों की दौड़ में विद्यार्थी अवसाद (तनाव) के शिकार हो रहे हैं एवं युवा पीढ़ी उदंड होने के साथ मोबाइल एवं अन्य गतिविधियों से भटकाव की ओर परिवार से दूर होते जा रहे हैं। घरों में बच्चों की संख्या एक या दो होने से ज्यादा लाड-प्यार में परिवारों के मध्य अनुशासनहीनता एवं बड़े-छोटे का सम्मान खत्म होता जा रहा है।
दूसरों को दोष देने के बजाय! मैं क्या कर सकता हूं, मेरे लिए यह बात ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसलिए गुड डे डिफेंस स्कूल के संपूर्ण टीम द्वारा शिक्षा पद्धति में नवाचार करते हुए विद्यार्थियों को गुरुकुल पद्धति द्वारा संस्कारवान बनाने का प्रयास किया जा रहा है। और सैनिक स्कूल पद्धति द्वारा उनको शारीरिक व मानसिक रूप से मजबूत किया जा रहा है ताकि विद्यार्थी तनाव रहित होकर ज्ञानार्जन कर सके और अपने ज्ञान से राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभा सके।
सादर वंदे!
वर्तमान शिक्षा का स्वरूप कैसा हो, इस पर समय-समय पर प्रबुद्ध शिक्षाविदों द्वारा अनवरत समीक्षाएं होती रही है। मेरा यह स्पष्ट रूप से व्यक्तिगत मत है कि हमारी प्राचीन शिक्षा पद्धति सर्वोत्तम थी, क्योंकि वह ऋषि-मुनियों द्वारा संचालित गुरुकुल शिक्षा प्रणाली थी। आज से 5000 वर्ष पूर्व विश्व के ज्यादातर सभ्यताएं खानाबदोश जीवन यापन करती थी, तब भारत में सिंधु घाटी सभ्यता उन्नति के शिखर पर थी। जब अन्य सभ्यताओं को लिखना भी नहीं आता था, तब हमारे ऋषि-मुनियों ने विश्व को ऋगवेद ग्रंथ दे दिया था। भारतीय सभ्यता और वेदों ने समूचे विश्व को दशमलव, शून्य, दिशा सूचक और पंचांग (कलेंडर) से लेकर नृत्य, गायन, वादन जैसे लोक कलाओं के साथ ज्योतिष, साहित्य सृजन, विज्ञान, तकनीकी, निर्माण, गणनांक, कृषि, चिकित्सा विज्ञान, खगोलीय गणना के अलावा अंतरिक्ष विज्ञान का प्रमाणित ज्ञान दिया है।
मौजूदा शिक्षा पद्धति विद्यार्थियों को संपूर्णता की ओर नहीं ले जा रही। अंकों की दौड़ में विद्यार्थी अवसाद (तनाव) के शिकार हो रहे हैं एवं युवा पीढ़ी उदंड होने के साथ मोबाइल एवं अन्य गतिविधियों से भटकाव की ओर परिवार से दूर होते जा रहे हैं। घरों में बच्चों की संख्या एक या दो होने से ज्यादा लाड-प्यार में परिवारों के मध्य अनुशासनहीनता एवं बड़े-छोटे का सम्मान खत्म होता जा रहा है।
दूसरों को दोष देने के बजाय! मैं क्या कर सकता हूं, मेरे लिए यह बात ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसलिए गुड डे डिफेंस स्कूल के संपूर्ण टीम द्वारा शिक्षा पद्धति में नवाचार करते हुए विद्यार्थियों को गुरुकुल पद्धति द्वारा संस्कारवान बनाने का प्रयास किया जा रहा है। और सैनिक स्कूल पद्धति द्वारा उनको शारीरिक व मानसिक रूप से मजबूत किया जा रहा है ताकि विद्यार्थी तनाव रहित होकर ज्ञानार्जन कर सके और अपने ज्ञान से राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभा सके।
सादर
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